भगवान का स्मरण किसी सौदे के तहत नहीं ...

>> Wednesday, August 6, 2008

महाराज युधिष्ठिर ध्यानमग्न बैठे थे। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो द्रौपदी ने कहा, 'धर्मराज! आप भगवान का इतना ध्यान करते हैं, उनका भजन करते हैं, फिर उनसे यह क्यों नहीं कहते कि हमारे संकटों को दूर कर दें। इतने सालों से हम वन में भटक रहे हैं। इतना कष्ट होता है, इतना क्लेश। कभी पत्थरों पर रात बितानी होती है तो कभी कांटों में। कहीं प्यास बुझाने को पानी नहीं मिलता, तो कभी भूख मिटाने को भोजन नहीं। इसलिए भगवान से कहिए कि वे हमारे कष्टों का अंत करें।' इस पर युधिष्ठिर बोले, 'सुनो द्रौपदी! मैं भगवान का स्मरण किसी सौदे के तहत नहीं करता। मैं आराधना करता हूं क्योंकि इससे मुझे आनंद मिलता है। उस विशाल पर्वतमाला को देखो। उसे देखते ही मन प्रसन्न हो उठता है। हम उससे कुछ मांगते नहीं। हम उसे देखते हैं इसलिए कि उसे देखने में हमें प्रसन्नता मिलती है। पूरी प्रकृति से हमारा रिश्ता ऐसा ही है। बिना किसी प्राप्ति की आशा से ही हम उससे जुड़ते हैं। इसमें असीम सुख की अनुभूति होती है। मैं ऐसे ही सुख के लिए ईश्वरोपासना करता हूं, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं।'

1 comments:

Pawan Kumar August 17, 2008 at 5:53 PM  

Kaash ki hum sab bina kisi saude ke jud paate.Jise bhi dekhiye wo kisi na kisi swarth ke liye hi sambandh jodta hai.Chaliye aapne bahut sensitive hokar socha...