विद्वता के साथ मनुष्य में विनम्रता भी होनी चाहिए।

>> Wednesday, October 1, 2008

महाकवि माघ राजा भोज के राज्य में रहते थे। उन्हें अपनी विद्वता का बड़ा घमंड था। एक बार वह राजा भोज के साथ जंगल में घूमने निकले। लौटते समय शाम हो गई। वे किसी आश्रय की तलाश करने लगे। तभी उन्हें एक झोपड़ी दिखाई दी, जिसके बाहर एक बुढ़िया बैठी थी। महाकवि माघ ने बुढ़िया से पूछा, 'यह रास्ता किधर जाता है?' वृद्धा ने एक क्षण रुककर कहा, 'रास्ता तो कहीं नहीं जाता। वह तो अपने स्थान पर स्थिर है, केवल यात्री आते-जाते हैं। परंतु तुम कौन हो?' माघ ने उत्तर दिया, 'हम यात्री हैं।' यह सुन वृद्धा मुस्कराई और बोली, 'यात्री तो दो ही होते हैं- सूर्य और चंद्रमा, तुम कौन हो?' महाकवि अचरज में पड़ गए और बोले, 'हम राजा हैं।' उन्होंने सोचा कि शायद इस उत्तर का बुढ़िया पर प्रभाव पडे़ और वह आगे प्रश्न न करे, पर वृद्धा बोली, 'नहीं! आप लोग राजा नहीं हो सकते, क्योंकि राजा तो दो ही हैं- एक इंद्र और दूसरा यम।' महाकवि विचलित हो उठे और बोले, 'हे मां, हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं।' तब वृद्धा बोली, 'क्षणभंगुर भी दो ही होते हैं- पहला धन और दूसरा यौवन। पुराण कहते हैं कि इन दोनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।' वृद्धा की हाजिर जवाबी ने महाकवि को चक्कर में डाल दिया। वह बोले, 'हम सबको क्षमा करने वाली आत्मा हैं।' यह सुनकर वृद्धा मुस्कराई और बोली, 'इस संसार में सबको क्षमा करने वाली दो ही चीजें हैं- पृथ्वी और नारी। तुम इन दोनों की बराबरी कैसे कर सकते हो?' अब माघ ने हाथ जोड़कर कहा, 'मां, हम हार गए, अब तो रास्ता बताओ।' वह बोली, 'तुम हारे कहां हो? हारता तो वह है जिसने ऋण लिया हो या फिर जिसने चरित्र खो दिया हो। तुम इन दोनों में से किस श्रेणी में आते हो?' माघ अवाक रह गए। तब वृद्धा बोली, 'महाकवि माघ, मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानती हूं। विद्वता के साथ मनुष्य में विनम्रता भी होनी चाहिए। इसलिए अहंकार से दूर रहकर विनम्रता को अपनाओ, तभी श्रेष्ठ विद्वान कहलाओगे।'

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