इंटरनेट एक्सप्लोरर इस्तेमाल करने वाले सावधान

>> Saturday, December 20, 2008

लंदन. माइक्रोसाफ्ट ने ऐलान किया है कि दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जानेवाला वेब ब्राउजर इंटरनेट एक्सप्लोरर खतरनाक है। माइक्रोसाफ्ट ने कहा कि इसे इस्तेमाल करने वाले यूजर्स के कम्प्यूटर हैक हो सकते हैं। इसका कारण एक्सप्लोरर की सुरक्षा खामिया हैं। खुद इंटरनेट एक्सप्लोरर को बनाने वाले माइक्रोसाफ्ट कापरेरेशन ने इस बात की घोषणा कर इंटरनेट यूजर्स में डर पैदा कर दिया है। उन्होंने इस बात का खुलासा किया है कि उनके वेबबाउजर को इस्तेमाल करने वाले कई लोगों की गोपनीय जानकारियां चोरी हो गई हैं। यह चोरी उस वक्त हुई जब उनके यूजर ने कुछ विशेष वेबसाइट्स सर्फ की।

माइक्रोसाफ्ट ने अपने ब्लॉग मालवेर प्रोटेक्शन में यह साफ साफ कहा है कि इंटरनेट एक्सप्लोरर 7 इस्तेमाल करनेवाले यूजर के कम्प्यूटर हैक किए गए हैं। इस बात से सबसे ज्यादा चीनी वेबसाइट्स को नुकसान पहुंचा है। कई गेम कंपनी की साइट से सूचना चुरा कर हैकर्स ने उन्हें कालेबाजार में बेच दिया है। हैकर बैंक और अन्य गोपनीय सूचना भी चुराने में कामयाब रहे हैं। माइक्रोसाफ्ट इससे निपटने के लिए काम कर रहा है। फिलहाल उसने अपने यूजर्स से एंटी वायरस और एंटी स्पायवेर इस्तेमाल करने का आग्रह किया है। वेब विशेषज्ञों के अनुसार इंटरनेट एक्सप्लोरर के बजाए फायरफॉक्स, सफारी या ओपेरा वेब ब्राउजर इस्तेमाल करना बेहतर होगा।

http://www.microsoft.com/technet/security/bulletin/ms08-078.mspx


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‘वेडनेसडे’ से वेडनेसडे तक

>> Saturday, November 29, 2008

परदे के पीछ आतंकवादियों ने नसीरुद्दीन शाह अभिनीत ‘ए वेडनेसडे’ देखी है जिसमें नायक कहता है कि दुष्ट शक्तियों ने शुक्रवार, शनिवार को हमले किए हैं। जिसके जवाब में मैंने बुधवार को चुना। इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में मन में उठे ज्वारभाटे को संयत रखकर तर्क के आधार पर मनन करना चाहिए। इस समय अपने राजनीतिक विचारों और व्यक्तिगत-धार्मिक पूर्वग्रहों को तजकर सोचना चाहिए। यह नारेबाजी का समय नहीं है।

कांग्रेस को दोष देने वाले भूल जाते हैं कि वाजपेयी के शासनकाल में आतंकी संसद में घुस गए थे। नरेंद्र मोदी जैसे सशक्त मुख्यमंत्री की नाक के नीचे अहमदाबाद में आक्रमण हुए और जयपुर के साइकिल बम धमाकों को कैसे भूला जा सकता है। आतंकवादी संगठन यह नहीं देखते कि कौन सत्तासीन है। यह मामला धर्म से भी नहीं जुड़ा है।

गौरतलब है कि जैसे भारत में अनेक भारत मौजूद हैं, वैसे ही पाकिस्तान में अनेक पाकिस्तान मौजूद हैं और वहां का अवाम भी हमारे अवाम की तरह असहाय है। पाकिस्तान में विगत साठ वर्षो से सेना प्रमुख भूमिका में हैं और इतनी शक्तिशाली है कि नेताओं की इच्छा के खिलाफ भी काम करती है।

पाकिस्तान की जन आकांक्षा को सेना कभी अहमियत नहीं देती। तालिबान ताकतों की घुसपैठ पाकिस्तानी समाज और सरकार में बहुत गहरी है और उन्हें भारत को नुकसान पहुंचाना पसंद है। पाकिस्तान से आकर मुंबई पर आक्रमण करने वाले न इस्लामी हैं और न ही पाकिस्तानी। वे उस दल के हैं जो पूरे विश्व में शांति के खिलाफ हैं।

भारत पर विश्व की मंदी का असर अन्य देशों की तुलना में कम पड़ रहा था, अत: उसके आर्थिक आधार पर आघात किया गया है। भारत के तमाम शहरों से भारी मात्रा में धन मुंबई आता है क्योंकि तमाम बड़ी कंपनियों के मुख्यालय यहां पर हैं, अत: मुंबई को अस्थिर करना उन्हें भारत को तोड़ने की तरह लगता है।

आमतौर पर हमले आम आदमी के ठिकाने पर होते आए हैं और पहली बार भारत के अमीर लोगों के ठिओं को निशाना बनाया गया है। नवंबर और दिसंबर के पहले दो सप्ताहों में अनेक मल्टीनेशनल कंपनियों के शिखर अधिकारी भारत आते हैं और नए व्यापारिक अनुबंध होते हैं। अत: इस बार एक तीर से दो शिकार किए गए।

आतंकवादी संगठनों में बहुत काबिल लोग सक्रिय हैं और उनके पास हमारी पुलिस से अधिक जानकारियां हैं। मुंबई के नरीमन भवन में इजरायली रहते हैं जैसी जानकारी भी उनके पास थी। टेक्नोलॉजी का भरपूर फायदा वह उठाते हैं। उनके पास पुलिस से बेहतर शस्त्र हैं। उनका प्रशिक्षण भी उच्चतम मानदंड पर किया गया है। उनके मन में पैदा किया गया उन्माद और मृत्युइच्छा उनकी कुशलता को धार प्रदान करती है। इस राष्ट्रीय संकट से उबरने में केवल एक ही चीज हमारी सहायता कर सकती है और वह है राष्ट्रीय चरित्र का विकास और उसकी निर्भीक अभिव्यक्ति।

यह काम राजनैतिक दल नहीं कर सकते क्योंकि राष्ट्रीय चरित्र के विकास के साथ ही उनके निजी स्वार्थ और सत्ता का लालच मर जाएगा। सत्ता के समीकरणों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय चिंता का समय है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सुरक्षा और उनका भविष्य उनके भूतकाल से जुड़ा है और समग्र एशिया की शांति के उद्देश्य के साथ ही यह लड़ाई लड़ी जा सकती है।

दैनिक भास्कर से सभार

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जीवन में भी है गार्बिज इन, गार्बिज आउट

>> Friday, November 21, 2008

एक बालक अपने पिता के साथ भ्रमण करते हुए किसी पर्वतीय क्षेत्र में जा पहुंचा। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पर्वत मानो उन्हें चिढ़ा रहे थे। अचानक वहां एक स्थान पर बच्चे का पैर फिसला। पैर फिसलने पर उसके मुंह से 'आह-आह' का स्वर निकला। यही आह-आह की आवाज पहाड़ों से भी प्रतिध्वनित होकर आई, जिसे सुनकर वह बच्चा हैरान रह गया। इस पर बच्चा जोर से चिल्लाया- तुम कौन हो, वापस लौटकर वही आवाज आई - तुम कौन हो? इस पर नाराज़ होकर बच्चा बोला- तुम कायर हो। तब पलटकर आवाज आई- तुम कायर हो।
बालक ने चकित होकर अपने पिता से पूछा- यह क्या हो रहा है? पिता मुस्कराए और बोले- अब मैं भी कुछ कहता हूं, इसे ध्यान से सुनना। इतना कहकर वे जोर से चिल्लाए- मैं तुम्हारी प्रशंसा करता हूं। तुम अद्भुत हो। वही आवाज लौटकर आई। बालक को कुछ भी समझ न आया। तब पिता ने बताया कि आवाज के इस तरह लौटकर आने को प्रतिध्वनि कहते हैं। जो बात हम पहाड़ों से कहते हैं, वही बात लौटकर हमारे पास आती है। 

फिर पिता ने समझाया- बेटा, जीवन भी ऐसा ही है। यहां हम जो भी कहते या करते हैं, वही हमें वापस मिलता है। हमारा जीवन हमारे कामों की ही प्रतिच्छाया है। 

पुन: उन्होंने समझाते हुए कहा- जब हम छोटे थे तो हमें पढ़ाया जाता था कि जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। कंप्यूटर की आधुनिक भाषा में यही बात इस तरह कही जाती है- गार्बिज इन, गार्बिज आउट। इस संसार का यही नियम है। हमेशा ऐसा ही होता आया है। बस हमें यह पता नहीं होता कि कब और कैसे कोई बात हो जाती है? यदि हम किसी को मित्र बनाते हैं, तो हमें उससे निष्कपट प्रेम करना होगा। 

किसी को धन-संपत्ति दे देना प्रेम नहीं होता, किंतु किसी की व्यथा का अनुभव कर उससे मीठा बोलना या सहानुभूति देना महत्व रखता है। जब हम कष्ट में मदद का हाथ बढ़ाते हैं, तो हम बहुत कुछ दे देते हैं। पर कई बार लोगों का व्यवहार इसके उलट होता है। अगर कोई व्यक्ति अपने किसी पड़ोसी की कोई मदद करता है, तो कुछ समय बाद वह पड़ोसी को उसके प्रति किए गए उपकारों की याद दिलाता है कि देखो, मैंने तुम्हारी फलाना-फलाना सहायता की थी। इस तरह उन अच्छे कामों को गिन-गिन कर पड़ोसी पर कृतघ्नता का बोझ लादते हैं। यही नहीं, दूसरों के राई भर दोष को बिल्व फल के समान तथा अपने बिल्व के समान दोष को राई के समान समझते हैं। 

समस्या तो यह है कि हम ईश्वर तक से ऐसा ही व्यवहार करते हैं। ईश्वर हमें अपने दिव्य भंडार से दिल खोलकर अन्न, जल, प्रकाश तथा वायु देता है, परंतु इतना सब कुछ पाने पर भी हम उसके अहसान को भूल जाते हैं। यदि हमें ईश्वर से तथा उसके बनाए हुए जीवों से प्रेम चाहिए, तो हमें अपने आप में नदी जैसी उदारता, सूर्य जैसी कृपालुता तथा पृथ्वी की भांति आतिथ्य भाव उत्पन्न करना होगा। हम वणिक की भांति व्यापार की भावना न रखें कि एक सत्कार्य के बदले में फल की प्रतीक्षा करने लगें। किसी नेकी और प्रेम का प्रतिदान कब कहां और किस रूप में मिलेगा- इसका हमें ज्ञान नहीं हो सकता, पर जीवन में वह प्रतिदान मिलता अवश्य है।

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चंद्रयान हम और आप

>> Wednesday, November 19, 2008

भारत चांद पर जा पहुंचा है? यकीन नहीं होता… यह महानगरों की टूटी- फूटी सड़कों वाला, गांवों में गुल बिजली वाला देश चांद पर जा पहुंचा है? कब हो गया, कैसे हो गया, किसने किया यह चमत्कार?

जब हम सरकारी दफ्तरों में चाय पीते, फाइलें टालते समय गुजार रहे थे, घर का कचरा गली में फेंक कर सफाई कर रहे थे, सड़कों पर थूक रहे थे, भाषा-जाति-धर्म-प्रांत के नाम पर फूट डालने वाले नेताओं के पीछे अंधों की तरह भाग रहे थे, सिनेमा और क्रिकेट के नायकों पर फिदा हुए जा रहे थे….

तब कुछ गुमनाम वैज्ञानिक देश के किसी गुमनाम कोने में अपने जीवन के अमूल्य वर्ष बिता कर भारत को चांद पर भेजने के लिए काम कर रहे थे। चंद्रयान को बनाने के पहले और उसके जरिए  चांद पर तिरंगा भेजने के बाद भी, ये सारे वैज्ञानिक अब भी स्वेच्छा से गुमनामी में हैं, अब भी भारत के लिए काम कर रहे हैं।

आज लालबहादुर शास्त्री होते तो उन्हें इन वैज्ञानिकों पर गर्व होता।

भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खां, सुखदेव और राजगुरू होते तो उन्हें इन वैज्ञानिकों पर गर्व होता।

क्या आपको गर्व है अपने इन देशवासियों पर जिनकी कर्तव्यनिष्ठा से आज चांद पर तिरंगा मौजूद है?

अगर है, तो कृपया आप उनके सम्मान में कुछ करिए।

ज्यादा नहीं, सिर्फ इतना ही कि आपके जो सामाजिक और राष्ट्रीय कर्तव्य हैं उन्हें निभाने की कोशिश करिए।

कोशिश करिए कि जिस दफ्तर की तनख्वाह आपको रोटी देती है, उसका कार्य पूरी निष्ठा से करें।

कोशिश करिए कि सार्वजनिक स्थान पर आप कचरा फेंकने के भागी न बनें।

कोशिश करिए कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन आपके द्वारा न हो।

कोशिश करिए कि बिना लाउडस्पीकर लगाए समारोह- त्योहार की खुशी मना सकें।

कोशिश करिए कि अपने गांव- शहर- कस्बे में वृक्षारोपण करने में सहभागी बन सकें।

कोशिश करिए कि बांटने की भाषा बोलने वाले हर राजनेता से दूर रह सकें।

सबसे बढ़ कर: यह मत देखिए कि दूसरा क्या कर रहा है, यह देखिए कि आप क्या कर रहे हैं।  

बहुत सारी बातें हैं जो आप अपने देश को गर्व करने लायक बनाने के लिए कर सकते हैं।

कोशिश तो करिए। 

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The Fact of Section 49-O if Indian Constitution

>> Thursday, October 16, 2008

Dear Fiends,

These day another hoax mail is spreading with following text:
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Section 49-O of the Conduct of Election Rules 1961.

Did you know that there is a system in our constitution, as per the 1969 act, in section "49-O" that a person can go to the polling booth, confirm his identity, get his finger marked and convey the presiding election officer that he doesn't want to vote anyone!Yes such a feature is available, but obviously these seemingly notorious leaders have never disclosed it. This is called "49-O". Why should you go and say "I VOTE NOBODY"...

Because, in a ward for example, if a candidate wins, say by 123 votes, and that particular ward has received "49-O" votes more than 123, then that polling will be cancelled and will have to be re-polled. Not only that, but the candidature of the contestants will be removed and they cannot contest the re-polling, since people had already expressed their decision on them. This would bring fear into parties and hence look for genuine candidates for their parties for election. This would change the way, of our whole political system...

It is seemingly surprising why the election commission has not revealed such a feature to the public....It Seems to be a wonderful weapon against corrupt parties in India...

Show your power, expressing your desire not to vote for anybody, is even more powerful than voting...

So don't miss your chance.

So either “VOTE”, or vote “NOT TO VOTE” (vote 49-O)
We, the people of India, can really use this power to save our nation।


Use your voting right for a better INDIA।

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I’ve gone thru it and find some Fact, which I’d like to share with you.

In Indian Constitution there is No any Section 49-O

The Said Section is Available with Indian Ministry of Law and Justice, THE CONDUCT OF ELECTIONS RULES, 1961 which says

“49-O. Elector deciding not to vote.-If an elector, after his electoral roll number has been duly entered in the register of voters in Form-17A and has put his signature or thumb impression thereon as required under sub-rule (1) of rule 49L, decided not to record his vote, a remark to this effect shall be made against the said entry in Form 17A by the presiding officer and the signature or thumb impression of the elector shall be obtained against such remark.”

This is the Real Fact।


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क्या टीवी चैनल ऎसा नहीं कर सकते?

>> Saturday, October 4, 2008

बात उस समय की है, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका “ टाइम” ने उस हादसे की तस्वीर प्रकाशित नहीं की। लेकिन अपने इस फैसले के बारे में एक संपादकीय जरूर प्रकाशित किया।

“टाइम” ने लिखा, बावजूद इसके, कि यह हादसा दुनिया पर असर डालने वाली घटनाओं में से एक था, बावजूद इसके, कि राजीव गांधी विश्व के एक प्रमुख नेता थे, उन्होंने संपादकीय मंडल के विचार-विमर्श के बाद उनकी मृत्यु की तस्वीर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया।

“टाइम” के संपादकीय में लिखा गया था, कि “वे तस्वीरें प्रकाशित नहीं करने का फैसला इसलिए किया गया कि मौत ने उन्हें वह गरिमा नहीं बख्शी जिसके वह हकदार थे। हम वे तस्वीरें नहीं प्रकाशित कर उनकी गरिमा की रक्षा करना चाहते थे।“

यह बात हम भारतीय समाचार टीवी चैनलों को याद दिला कर एक अनुरोध करना चाहते हैं, कम से कम लाशों की तसवीरें तो प्रसारित नहीं करिए।

बम विस्फोट हो, या चामुंडा मंदिर में भगदड़, या लखनऊ फ्लाईओवर के धंसने से उसके नीचे दबे मृत शरीर- उनकी तस्वीरें दिखा कर क्या आप किसी मृतक की गरिमा का अनादर नहीं कर रहे? क्या उनके शोकग्रस्त परिवारों के प्रति आप यत्र- तत्र बुरी हालत में पड़ी लाशों की तस्वीरें टीवी पर दिखा कर उस हादसे से भी ज्यादा क्रूरता नहीं बरतते?

कितने ही अखबारों ने भोपाल गैस कांड के बाद लाशों की वीभत्स तस्वीरें छपने से परहेज किया था। तस्वीरें छपीं जरूर, लेकिन प्रतीकात्मक।

हादसों की रिपोर्टिंग करते समय क्या टीवी चैनलों पर भी पत्रकारिता की इस गरिमामय परंपरा का पालन नहीं किया जा सकता?

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विद्वता के साथ मनुष्य में विनम्रता भी होनी चाहिए।

>> Wednesday, October 1, 2008

महाकवि माघ राजा भोज के राज्य में रहते थे। उन्हें अपनी विद्वता का बड़ा घमंड था। एक बार वह राजा भोज के साथ जंगल में घूमने निकले। लौटते समय शाम हो गई। वे किसी आश्रय की तलाश करने लगे। तभी उन्हें एक झोपड़ी दिखाई दी, जिसके बाहर एक बुढ़िया बैठी थी। महाकवि माघ ने बुढ़िया से पूछा, 'यह रास्ता किधर जाता है?' वृद्धा ने एक क्षण रुककर कहा, 'रास्ता तो कहीं नहीं जाता। वह तो अपने स्थान पर स्थिर है, केवल यात्री आते-जाते हैं। परंतु तुम कौन हो?' माघ ने उत्तर दिया, 'हम यात्री हैं।' यह सुन वृद्धा मुस्कराई और बोली, 'यात्री तो दो ही होते हैं- सूर्य और चंद्रमा, तुम कौन हो?' महाकवि अचरज में पड़ गए और बोले, 'हम राजा हैं।' उन्होंने सोचा कि शायद इस उत्तर का बुढ़िया पर प्रभाव पडे़ और वह आगे प्रश्न न करे, पर वृद्धा बोली, 'नहीं! आप लोग राजा नहीं हो सकते, क्योंकि राजा तो दो ही हैं- एक इंद्र और दूसरा यम।' महाकवि विचलित हो उठे और बोले, 'हे मां, हम क्षणभंगुर मनुष्य हैं।' तब वृद्धा बोली, 'क्षणभंगुर भी दो ही होते हैं- पहला धन और दूसरा यौवन। पुराण कहते हैं कि इन दोनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।' वृद्धा की हाजिर जवाबी ने महाकवि को चक्कर में डाल दिया। वह बोले, 'हम सबको क्षमा करने वाली आत्मा हैं।' यह सुनकर वृद्धा मुस्कराई और बोली, 'इस संसार में सबको क्षमा करने वाली दो ही चीजें हैं- पृथ्वी और नारी। तुम इन दोनों की बराबरी कैसे कर सकते हो?' अब माघ ने हाथ जोड़कर कहा, 'मां, हम हार गए, अब तो रास्ता बताओ।' वह बोली, 'तुम हारे कहां हो? हारता तो वह है जिसने ऋण लिया हो या फिर जिसने चरित्र खो दिया हो। तुम इन दोनों में से किस श्रेणी में आते हो?' माघ अवाक रह गए। तब वृद्धा बोली, 'महाकवि माघ, मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानती हूं। विद्वता के साथ मनुष्य में विनम्रता भी होनी चाहिए। इसलिए अहंकार से दूर रहकर विनम्रता को अपनाओ, तभी श्रेष्ठ विद्वान कहलाओगे।'

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काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा

>> Thursday, September 18, 2008

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा.. प्रोफ़ेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो.... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं,
और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी..
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा..
मन के सुख के लिये क्या जरूरी ह? ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है...
पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे... अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

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भगवान का स्मरण किसी सौदे के तहत नहीं ...

>> Wednesday, August 6, 2008

महाराज युधिष्ठिर ध्यानमग्न बैठे थे। जब उन्होंने आंखें खोलीं, तो द्रौपदी ने कहा, 'धर्मराज! आप भगवान का इतना ध्यान करते हैं, उनका भजन करते हैं, फिर उनसे यह क्यों नहीं कहते कि हमारे संकटों को दूर कर दें। इतने सालों से हम वन में भटक रहे हैं। इतना कष्ट होता है, इतना क्लेश। कभी पत्थरों पर रात बितानी होती है तो कभी कांटों में। कहीं प्यास बुझाने को पानी नहीं मिलता, तो कभी भूख मिटाने को भोजन नहीं। इसलिए भगवान से कहिए कि वे हमारे कष्टों का अंत करें।' इस पर युधिष्ठिर बोले, 'सुनो द्रौपदी! मैं भगवान का स्मरण किसी सौदे के तहत नहीं करता। मैं आराधना करता हूं क्योंकि इससे मुझे आनंद मिलता है। उस विशाल पर्वतमाला को देखो। उसे देखते ही मन प्रसन्न हो उठता है। हम उससे कुछ मांगते नहीं। हम उसे देखते हैं इसलिए कि उसे देखने में हमें प्रसन्नता मिलती है। पूरी प्रकृति से हमारा रिश्ता ऐसा ही है। बिना किसी प्राप्ति की आशा से ही हम उससे जुड़ते हैं। इसमें असीम सुख की अनुभूति होती है। मैं ऐसे ही सुख के लिए ईश्वरोपासना करता हूं, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं।'

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कच्चे तेल और सोने की रिश्तेदारी

मैं शुरुआत करता हूं उस दिलचस्प बातचीत से जो मैंने हाल में सुनी। मैं एक दोस्त के साथ एक ट्रेडर के डीलिंग रूम में बैठा हुआ था। मैंने चीफ डीलर से सवाल किया, 'आखिर तेल को हुआ क्या है? रेकॉर्ड ऊंचाई से उसकी कीमतें 20 फीसदी नीचे आ चुकी हैं। क्या अब आप खरीदारी करेंगे?' उन्होंने जवाब दिया, 'कच्चे तेल के दामों में कमी, बिकवाली और विकसित मुल्कों विकास को लेकर पैदा हुई आशंका की वजह से है। इसलिए इसकी मांग कम हो सकती है।' इसके बाद डीलर ने ईरान (ग्लोबल लेवल पर तेल के कुल उत्पादन के 40 फीसदी हिस्से पर नियंत्रण रखने वाले ओपेक का सदस्य) में किसी को फोन लगाया। मैंने उन्हें कहते हुए सुना, 'क्या इस्राइल और ईरान के बीच कशमकश जारी है? इराक, नाइजीरिया से सप्लाई में रुकावट का खतरा बना हुआ है। अमेरिकी भंडार में कमी आ रही है और तेल के नए भंडार नहीं मिले हैं।' मैं इस बात को लेकर निश्चित था कि उनकी अगली प्रतिक्रिया ज्यादा कच्चा तेल खरीदने की होगी क्योंकि उनके मुताबिक आपूर्ति असुरक्षित बनी हुई है। चौंकाने वाले घटनाक्रम में उस व्यक्ति ने दूसरी टेलीफोन कॉल दक्षिण अफ्रीका में किसी को लगाई और सवाल किया, 'खनन उद्योग के क्या हाल हैं? सोने की मात्रा में कोई बढ़ोतरी हुई है? क्या सोने की खदानों को एस्कॉम की ओर से बिजली आपूर्ति में बाधा का सामना करते रहना होगा?' दूसरी तरफ से पहले सवाल का जवाब 'न' था और दूसरे का 'शायद'। डीलर ने कहा, 'ठीक है 50 लाख डॉलर का सोना खरीद लो।' मेरा दिमाग घूम गया और मैं यह पूछने पर मजबूर हो गया, 'आपकी आखिरी कॉल के बाद मुझे भरोसा था कि आप और कच्चा तेल खरीदने का ऑर्डर देंगे। अचानक सोना कहां से बीच में आ गया?' वह मुस्कराए और मुझे एक चार्ट दिखाया। उन्होंने मुझसे सवाल किया, 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का दुनिया भर में दामों के सामान्य स्तर से क्या लेना है?' मैंने कहा, 'जाहिर है, कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से महंगाई दर को रफ्तार मिलती है।' उन्होंने आगे सवाल किया, 'क्या सोना मुद्रा का प्रतिनिधित्व करने की एक किस्म है?' मैंने जवाब दिया, 'जी, बिलकुल। वास्तव में 1900 में दुनिया के ज्यादातर मुल्कों में सोने के मानक थे- यानी इस सुनहरी धातु को विनिमय के माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।' मान लीजिए कि आज सोना एक मुद्रा है। एक बैरल कच्चा तेल खरीदने के लिए आपको कितना सोना चाहिए होगा? या फिर एक औंस सोना लेने के लिए आपको कितने बैरल कच्चे तेल की जरूरत होगी? जवाब है कि एक औंस सोने के लिए आपको 7।3 बैरल कच्चा तेल चाहिए होगा। इस अनुपात को सोना-तेल रेशियो के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा, 'आप लंबे वक्त के चार्ट पर गौर करें, एक औंस सोने के लिए आपको 14.5 बैरल कच्चे तेल की जरूरत होती थी, लेकिन अब सिर्फ 7.3 बैरल की आवश्यकता है।' मैंने हां में जवाब दिया और कहा, 'ऐसा इसलिए है क्योंकि कच्चा तेल 1980 में 38 डॉलर प्रति बैरल से 123 डॉलर पर जा पहुंचा है, जबकि सोने की चाल में इतनी रफ्तार देखने को नहीं मिली है। वह अब भी करीब 910 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा है, जो 1980 के 850 डॉलर प्रति औंस से कुछ ज्यादा है।' वह उत्साहित होकर बोले, 'ठीक फरमाया। मौजूदा कीमतों के आधार पर सोना-तेल अनुपात को 14.50 की दीर्घकालिक औसत तक पहुंचने के लिए या तो कच्चे तेल के दामों को 63 डॉलर प्रति बैरल तक लुढ़कना होगा या फिर सोने की कीमतों को 1,700 डॉलर तक पहुंचना होगा।' जब उनके दफ्तर से बाहर निकल रहा था तो मेरे दिमाग में यह बात आई कि ईरान, इराक और नाइजीरिया जैसे मुल्कों में भौगोलिक-राजनीतिक हालात में अनिश्चितता साफ देखी जा सकती है। नए भंडार भी नहीं मिल रहे। कच्चे तेल का 63 डॉलर के स्तर तक आना मुमकिन नहीं दिख रहा, ऐसे में सोना कहां जाएगा? अमेरिका मंदी के मुहाने पर खड़ा है, वित्तीय संकट अभी खत्म नहीं हुआ है, महंगाई दर अपनी तेज गति जारी रखे हुए है और अमेरिकी डॉलर टूट रहा है। कुल मिलाकर सोने के दाम बढ़ने के तमाम कारण मौजूद हैं। संयोग से उसी वक्त मुझे मेरे स्टॉक ब्रोकर ने फोन किया और बताया कि बाजार चढ़ रहा है इसलिए मुझे शेयर खरीदने चाहिए। मैंने कहा, 'माफी चाहता हूं, मैं फिलहाल सोना खरीदना चाहता हूं।' वह काफी खुश हुआ और उसने कहा, 'मैं आकर्षक कीमतों पर सोना खरीदने में आपकी मदद करूंगा। सोना खरीदने का सबसे सही रास्ता एनएसई पर गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड खरीदना है। यह किसी भी दूसरे शेयर खरीदने जितना आसान है।' उस दिन शाम में मैं इस बारे में सोच रहा था कि कच्चे तेल, महंगाई दर और सोने का रिश्ता निवेश से जुड़े फैसलों के लिए कितना महत्वपूर्ण है। सोना खरीदना और बिना चिंता के उसे अपने पास रखना कितना आसान है। खास तौर से ऐसे वक्त में जब कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हों, महंगाई दर परेशान कर रही हो और शेयर बाजार गर्त में जा रहे हों।
आप सोचिये वह दोस्त कौन है और वह डीलर कौन हो सकता है?

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नज़रों का फर्क

>> Friday, August 1, 2008

एक गुरुकुल में दो राजकुमार पढ़ते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन उनके आचार्य दोनों को घुमाने ले गए। घूमते हुए वे काफी दूर निकल गए। तीनों प्राकृतिक शोभा का आनंद ले रहे थे। तभी आचार्य की नजर आम के एक पेड़ पर पड़ी। एक बालक आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा। आचार्य ने राजकुमारों से पूछा, 'क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?' ' हां गुरुदेव।' राजकुमारों ने उत्तर दिया। गुरु ने पूछा, 'इस दृश्य के बारे में तुम दोनों की क्या राय है?' पहले राजकुमार ने कहा, 'गुरुदेव मैं सोच रहा हूं कि जब वृक्ष भी बगैर डंडा खाए फल नहीं देता, तब किसी मनुष्य से कैसे काम निकाला जा सकता है। यह दृश्य एक महत्वपूर्ण सामाजिक सत्य की ओर इशारा करता है। यह दुनिया राजी-खुशी नहीं मानने वाली है। दबाव डालकर ही समाज से कोई काम निकाला जा सकता है।' दूसरा राजकुमार बोला, 'गुरुजी मुझे कुछ और ही लग रहा है। जिस प्रकार यह पेड़ डंडे खाकर भी मधुर आम दे रहा है उसी प्रकार व्यक्ति को भी स्वयं दुख सहकर दूसरों को सुख देना चाहिए। कोई अगर हमारा अपमान भी करे तो उसके बदले हमें उसका उपकार करना चाहिए। यही सज्जन व्यक्तियों का धर्म है।' यह कहकर वह गुरुदेव का चेहरा देखने लगा। गुरुदेव मुस्कराए और बोले, 'देखो, जीवन में दृष्टि ही महत्वपूर्ण है। घटना एक है लेकिन तुम दोनों ने उसे अलग-अलग रूप में ग्रहण किया क्योंकि तुम्हारी दृष्टि में भिन्नता है। मनुष्य अपनी दृष्टि के अनुसार ही जीवन के किसी प्रसंग की व्याख्या करता है, उसी के अनुरूप कार्य करता है और उसी के मुताबिक फल भी भोगता है। दृष्टि से ही मनुष्य के स्वभाव का भी पता चलता है।' गुरु ने पहले राजकुमार से कहा, 'तुम सब कुछ अधिकार से हासिल करना चाहते हो जबकि तुम्हारा मित्र प्रेम से सब कुछ प्राप्त करना चाहता है।'

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सफलता की कुंजी

>> Wednesday, July 23, 2008

फोर्ड मोटर के मालिक हेनरी फोर्ड दुनिया के चुनिंदा धनी व्यक्तियों में शुमार किए जाते थे। उनकी गाड़ी की प्रशंसा दुनिया भर में होती थी। एक बार एक उद्योगपति मोटर कारखाना लगाने से पहले फोर्ड से सलाह करने अमेरिका गए। उद्योगपति ने अमेरिका पहुंच कर हेनरी फोर्ड से मिलने का समय मांगा। फोर्ड ने कहा, 'दिन में आपके लिए मैं ज़्यादा समय नहीं निकाल पाऊंगा, इसलिए आप शाम छह बजे आ जाइए।' उद्योगपति उनके घर पहुंचे। वहां एक आदमी बर्तन साफ कर रहा था। उन्होंने उससे कहा, 'मुझे हेनरी साहब से मिलना है।' वह आदमी उन्हें बैठक में बैठा कर अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद उसने उनके सामने आकर कहा, 'तो आप हैं वह उद्योगपति। मुझे हेनरी कहते हैं।' उद्योगपति को असमंजस में देख कर हेनरी ने कहा, 'लगता है आपको मेरे हेनरी होने पर संदेह हो रहा है।' उद्योगपति ने सकपका कर कहा, 'हां सर, अभी आप को एक नौकर का काम करते देख कर ताज्जुब हुआ। इतनी बड़ी कंपनी के मालिक को बर्तन साफ करते हुए देख कर किसी को भी भ्रम पैदा हो सकता है। यह काम तो नौकरों का है।' हेनरी ने कहा, 'शुरुआत में मैं एक साधारण इंसान था। अपना काम खुद करता था। अपने हाथ से किए गए कठोर परिश्रम का फल है कि आज मैं फोर्ड मोटर का मालिक बना हूं। मैं अपने अतीत को भूल न जाऊं और मुझे लोग बड़ा आदमी न समझने लगें, इसलिए मैं अपने सभी काम अपने हाथ से करता हूं। अपना काम करने में मुझे किसी तरह की शर्मिन्दगी और झिझक महसूस नहीं होती।' उद्योगपति उठ कर खड़े हो गए और बोले, 'सर, अब मैं चलता हूं। मैं जिस मकसद से आपके पास आया था, वह एक मिनट में ही पूरा हो गया। मेरी समझ में आ गया कि सफलता की कुंजी दूसरों पर भरोसा करने में नहीं अपने पर भरोसा करने में है।'

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योग्यता की परख

एक राजा के पास दो व्यक्ति आए और बोले, 'महाराज, हम नौकरी की तलाश में आए हैं। कोई काम मिल जाए तो कृपा होगी।' राजा ने उन दोनों को अलग-अलग बागों की रखवाली का काम दे दिया। एक दिन राजा अपने मंत्री के साथ एक बाग में गए। उसकी रखवाली करने वाले का नाम था - झूमर सिंह। उसने राजा और मंत्री का स्वागत किया और उनके लिए बाग से आम तोड़ लाया। राजा और मंत्री ने आम खाने शुरू किए, लेकिन जल्दी ही थूक दिए। आम बेहद खट्टे थे। यह देख झूमर सिंह डर गया। उसे लगा राजा उसे दंडित करेंगे, लेकिन राजा ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप मंत्री के साथ दूसरे बाग में चले गए। उसकी रखवाली अभयमल कर रहा था। उसने राजा और मंत्री को देखते ही उनके सामने थाल में आम सजाकर रख दिए और बोला, 'ये आम सभी बागों से ज़्यादा मीठे और स्वादिष्ट हैं। आप इन्हें खाकर प्रसन्न होंगे।' आम वास्तव में बहुत मीठे थे। राजा और मंत्री ने खूब आम खाए। फिर दोनों राजमहल लौट आए। दूसरे दिन राजा ने दोनों रखवालों को राजमहल बुलाया। उन्होंने अभयमल से कहा, 'आज से तुम दोनों बागों की रखवाली करोगे।' अभयमल खुश हो गया। इसके बाद राजा ने अपने गले का हार झूमर सिंह के गले में डालते हुए कहा, 'आज से तुम मेरे खजांची नियुक्त किए जाते हो।' झूमर सिंह भौचक रह गया। मंत्री को भी यह अटपटा लगा। वह तो सोच रहा था कि झूमर सिंह को सज़ा मिलेगी पर हुआ एकदम उलटा। उसने कुछ दिनों के बाद राजा से साहस करके इस बारे में पूछा। राजा ने मुस्कराते हुए कहा, 'झूमर सिंह ने जिस बाग की रखवाली की, उसका एक आम भी उसने स्वयं नहीं चखा। इसी कारण उसे पता नहीं था कि आम खट्टा है या मीठा। जबकि अभयमल ने आम चख लिया था, इसलिए उसे पता था कि आम मीठा है। मुझे लगता है कि झूमर सिंह ज्यादा ईमानदार है। इसलिए मैंने उसे खजांची बनाया।'

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लूट का जरिया हैं स्पैम मेल्स

>> Thursday, April 24, 2008

ई-बॉक्स में आ रही ज्यादातर ई-मेल्स में स्पैम होता है। स्पैम से बिजनेस करने वालों की होड़ मची है, जिसमें एशियन कंट्रीज अब पीछे नहीं हैं। कैसे ई-मेल्स में आने वाला स्पैम खतरनाक साबित हो सकता है।
ई-मेल के जरिए पैसा कमाना अब कंप्यूटर प्रोफैशनल्स के बाएं हाथ का खेल है। दिनरात कंप्यूटर से जूझने वालों ने पैसा कमाने का आसान रास्ता स्पैम को बनाया है। हाल ही में एक निजी कंपनी को जी-मेल के जरिए स्पैम ई-मेल भेजी गई। जी-मेल का नाम देखते हुए इस ई-मेल पर विश्वास करके कंपनी के ऑनर ने सब डीटेल्स दे डालीं और जब तक उन्हें कुछ पता चल पाता तो बहुत देर हो चुकी थी। यह किस्से दुनिया भर में बढ़ रहे हैं।
ज्यादातर ऑनलाइन शॉपिंग करने वाले यूजर्स भी स्पैमर्स का बिजनेस बढ़ा रहे हैं। कंप्यूटर प्रोफैशनल्स के मुताबिक इसीलिए अब यूजर्स को खुद ही अलर्ट होकर क्लिक करने की जरूरत है।
92.3 यह कोई एफएम फ्रिक्वैंसी नहीं बल्कि वो आंकड़ा है, जो स्पैमर्स की सक्सैस रेट बताता है। इस वक्त इन बॉक्स में आ रही 92.3 प्रतिशत मेल्स स्पैम होती हैं। हाल ही में सोफो कंपनी ने अपनी बाई-एनुअल रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के मुताबिक यूएस दुनिया भर में सबसे ज्यादा स्पैम फैला रहा है। 15.4 प्रतिशत स्पैम यूएस द्वारा भेजी जाती हैं, वहीं रशिया 7.4 प्रतिशत स्पैम के लिए जिम्मेदार है। इस दौड़ में अगर कांटीनेंट्स की बात की जाए तो एशिया के स्पैमर्स 34.3 प्रतिशत स्पैम इन बॉक्स में भेज रहे हैं, वहीं यूरोप 30.7 प्रतिशत और नार्थ अमेरीका 18.9 प्रतिशत से इस खेल में शामिल है।
स्पैम भेजकर जहां एक तरफ शरारती दिमाग पैसे कमा रहे हैं, वहीं ये यूजर्स के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। इन-बॉक्स में आने वाली कई मेल्स फेक होती हैं और साथ ही उनमें स्पैम होता है, जो कंप्यूटर और डाटा दोनों को नुकसान पहुंचाता है। इसीलिए ई-मेल सर्विस देने वाली वैबसाइट्स को सिक्योरिटी बढ़ाने की जरूरत है।
हालांकि स्पैम की रिपोर्ट करने के लिए हर ई-मेल सर्विस प्रोवाइडर रिपोर्ट एस स्पैम की ऑप्शन देता है, लेकिन फिर भी स्पैमर्स इनसे बचते हुए अपना काम कर रहे हैं। ज्यादातर स्पैम में याहू, जी-मेल और रैडिफमेल जैसे डोमेन नाम का होने के कारण यूजर्स इन्हें इग्नॉर नहीं कर पाते हैं।
ई-मेल ग्रुप्स के साथ सबसक्राइब करने वाले यूजर्स को भी स्पैम का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा ज्यादातर स्पैम कैनेडियन फारमेसी, लॉटरी, विन ए ट्रिप, सॉफ्टवेयर इंफॉरमेशन के नाम से भी भेजे जाते हैं। यह सब भी विदेशों में लूटा का जल बने हुए हैं, जो हर दिन नए शिकार फंसाते हैं।
जिन ई-मेल को रिपोर्ट ऐसे स्पैम करते हैं वो स्पैम फोल्डर में जाती है। यूजर्स को किसी भी अंजान ई-मेल आईडी से आई ई-मेल पर विश्वास नहीं करना चाहिए। स्पैम से भी कंप्यूटर में वायरस आ सकता है।

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बाल ठाकरे को एक बिहारी की चिट्ठी

>> Saturday, March 8, 2008

बालासाहब जी ,
पाए लागूं।

हम बिहारी राजनीति को लेकर काफी इमोशनल होते हैं और मैं भी कुछ अलग नहीं हूं। इसलिए जिस उम्र में बड़े-बड़े शहरों के बच्चे फिल्म और कार्टून से मनोरंजन करते रहे होंगे , मैं नेताओं के बयानों और उनके मायने ढूंढ़ने में उलझा रहता था क्योंकि मुझे लगता था कि नेता ही देश का भविष्य हैं। राजनीति के साथ प्रेम परवान चढ़ने के दौर में आप कब मेरे नायक बने , मुझे खुद भी नहीं पता चला। अबोध मन में आपके लिए इतनी इज़्ज़त क्यों थी , आज की तारीख में ठीक-ठीक बताना मुश्किल है। लेकिन शायद इसकी वजह यह रही होगी कि जिस दौर में मैं राजनीति समझ रहा था उस दौर में आप मुझे देश और हिंदू समाज के नायक लगते थे।
जैसे-जैसे राजनीति , देश , समाज और व्यवस्था की समझ बढ़ती गई , आप लगातार नायक से खलनायक के पाले में जाते दिखाई दिए। पहले आप देश को हिंदू और मुसलमानों में बांटने की राजनीति कर रहे थे और मैं हिंदू होने के कारण आपके साथ था। लेकिन फिर आप हिंदुओं को भी मराठी-गैरमराठी में बांटने लगे और मुझे लगा कि तो आपको हिंदुओं से कोई लेना-देना है ही हिंदुस्तानियों से। आज मुझे समझ में रहा है कि आपको सिर्फ अपने वोट बैंक से मतलब है और उसके लिए आप किसी को भी विलेन बता सकते हैं - चाहे वह आपका भतीजा ही क्यों हो !
आज जब मैं पहले की तरह बच्चा नहीं रहा तो मैं यह भी सोचता हूं कि कोई ऐसा व्यक्ति किसी राष्ट्र या समाज का नायक कैसे हो सकता है , जो उसको कई हिस्सों में तोड़ने की सियासत कर रहा हो। हालांकि , यह पहली बार नहीं है जब आप और आपकी पार्टी ने भौगोलिक आधार पर देश के किसी खास हिस्से के लोगों को निशाना बनाया हो। लेकिन इस बार बात दूर तलक निकल पड़ी है।
आप मानते हैं कि एक बिहारी , सौ बीमारी। वैसे यह विचार आपके अकेले के नहीं हैं। बिहारी शब्द देश के ज्यादातर हिस्सों में हिकारत का भाव दिखाने का प्रतीक बन गया है। हालांकि , आज सिर्फ वही बिहारी नहीं हैं जिनकी जड़ें बिहार में हैं। दिल्ली और मुंबई में मजदूर , कारीगर , मूंगफलीवाला , गुब्बारेवाला और वे सब बिहारी हैं जिनकी समाज में कोई ' हैसियत ' नहीं है।
आपका और आपके भतीजे राज ठाकरे का आरोप है कि बिहार और पूर्वी यूपी के लोग मुंबई में रहकर मराठी संस्कृति पर हमला बोल रहे हैं। ठाकरे जी , आपने कभी गणेश चतुर्थी पर मुंबई के पूजा मंडपों में जमा होनेवाली भीड़ में शामिल यूपी और बिहार के लोगों की गिनती की होती तो आपको पता चलता कि आपका आरोप कितना गलत हैं। जैसे कलकत्ता में रहनेवाला हिंदीभाषी दुर्गा पूजा में सारे परिवार के साथ पंडाल-पंडाल घूमते हैं , वैसे ही हम भी जहां रहते हैं , वहां के तीज-त्योहारों से खुद को कैसे अलग कर सकते हैं !
लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि हम अपनी संस्कृति से भी उतना ही प्यार करते हैं और हम उसे भुलाना भी नहीं चाहते। इसीलिए जब छठ पूजा होती है तो हम उसे भी पूरी निष्ठा के साथ मनाते हैं। आपको और आपके भतीजे को इस पर एतराज है जो कि मुझे समझ में नहीं आता। ठाकरे जी , अगर आप अमेरिका चले जाएं तो क्या आप वहां गणेश चतुर्थी के दिन उत्सव नहीं मनाएंगे ? अगर आप और आपकी ही तरह सारे मराठी महाराष्ट्र से बाहर भारत में और विदेश में कहीं भी अपने पर्व और त्योहारों को धूमधाम से मना सकते हैं ( और मनाना भी चाहिए ) तो बाकी लोगों पर पाबंदी क्यों ? अगर आपके ही तर्क मान लिए जाएं तो फिर मराठियों को भी राज्य से बाहर गणेश चतुर्थी नहीं मनानी चाहिए। क्या ठाकरे जी , आप भी कैसी बात करते हैं , वह भी उस देश में जिसका मिजाज़ यही है कि आप छठ पूजा में शरीक हों और हम गणपति बप्पा मोरया के नारे लगाएं। हम ईद में शरीक हों और हमारे मुस्लिम भाई दीवाली में। यह ऐसा देश है जहां हिंदू घरों में भी क्रिसमस पर केक खाया जाता है।
बालासाहब जी , हम मानते हैं कि हमारे नेता करप्ट हैं। लेकिन करप्ट नेता कहां नहीं हैं ? अगर अन्ना हज़ारे से पूछें तो शायद वह एक लंबी लिस्ट निकाल देंगे महाराष्ट्र के ऐसे नेताओं की। आप भी कांग्रेसी नेताओं पर भ्रष्ट होने के आरोप लगाते रहते हैं। वैसे भी आप राजनीति में लंबे समय से है , आपको क्या बताना कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। रही बात जहालत की और समस्याओं की तो गरीबी और अन्याय अगर बिहार में है तो क्या महाराष्ट्र में नहीं ? आत्महत्या कहां के किसान कर रहे हैं ? क्या उनकी आत्महत्याओं के लिए भी बिहारी ही दोषी हैं ?
मैं बिहार की वकालत नहीं कर रहा। बिहार में समस्याएं हैं। वे सुलझेंगी या नहीं या कितनी जल्दी या देर से सुलझेंगी , यह कहना मुश्किल है। पूंजी निवेश , उद्योग , बाज़ार और रोज़गार के मौके मिलेंगे तो यही बिहार चमचमा जाएगा और सारे पूर्वाग्रह खत्म हो जाएंगे। जब देश के दूसरे हिस्सों के लोग मोटी तनख्वाह पर कॉरपोरेट नौकरी के लिए बिहार जाएंगे तो सच मानिए , बिहार और बिहारी उतने बुरे नहीं लगेंगे।


आपका एक बिहारी

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Proud to Be INDIAN.....

>> Monday, February 18, 2008

This is written by a Pakistani journalist..........

Capital suggestion
By Dr Farrukh Saleem
12/9/2007

Here's what is happening in India:

The two Ambani brothers can buy 100 percent of every company listed on the Karachi Stock Exchange (KSE) and would still be left with $30 billion to spare. The four richest Indians can buy up all goods and services produced over a year by 169 million Pakistanis and still be left with $60 billion to spare. The four richest Indians are now richer than the forty richest Chinese.

In November, Bombay Stock Exchange's benchmark Sensex flirted with 20,000 points. As a consequence, Mukesh Ambani's Reliance Industries became a $100 billion company (the entire KSE is capitalized at $65 billion). Mukesh owns 48 percent of Reliance.

In November, comes Neeta's birthday. Neeta turned f orty-four three weeks ago. Look what she got from her husband as her birthday present: A sixty-million dollar jet with a custom fitted master bedroom, bathroom with mood lighting, a sky bar, entertainment cabins, satellite television, wireless communication and a separate cabin with game consoles. Neeta is Mukesh Ambani's wife, and Mukesh is not India's richest but t he second richest.

Mukesh is now building his new home, Residence Antillia (after a mythical, phantom island somewhere in the Atlantic Ocean). At a cost of
$1 billion this would be the most expensive home on the face of the planet. At 173 meters tall Mukesh's new family residence, for a family of six, will be the equivalent of a 60-storeyed building. The first six floors are reserved for parking. The seventh floor is for car servicing and maintenance. The eighth floor houses a mini-theatre. Then there's a health club, a gym and a swimming pool. Two floors are reserved for Ambani family's guests. Four flo ors above the guest floors are family floors all with a superb view of the Arabian Sea. On top of everything are three helipads. A staff of 600 is expected to care for the family and their family home.

In 2004, India became the 3rd most attractive foreign direct investment destination. Pakistan wasn't even in the top 25 countries. In 2004, the United Nations, the representative body of 192 sovereign member states, had requested the Election Commission of India to assist the UN in the holding elections in Al Jumhuriyah al Iraqiyah and Dowlat-e Eslami-ye Afghanestan. Why the Election Commission of India and not the Election Commission of Pakistan? After all, Islamabad is closer to Kabul than is Delhi.

Imagine, 12 percent of all American scientists are of Indian origin; 38 percent of doctors in America are Indian; 36 percent of NASA scientists are Indians; 34 percent of Microsoft employees are Indians; and 28 percent of IBM employees are Indians.

For the record: Sabeer Bhatia created and founded Hotmail. Sun Microsystems was founded by Vinod Khosla. The Intel Pentium processor, that runs 90 percent of all computers, was fathered by Vinod Dham. Rajiv Gupta co-invented Hewlett Packard's E-speak project. Four out of ten Silicon Valley start-ups are run by Indians. Bollywood produces 800 movies per year and s ix Indian ladies have won Miss Universe/Miss World titles over the past 10 years.

For the record: Azim Premji, the richest Muslim entrepreneur on the face of the planet, was born in Bombay and now lives in Bangalore.India now has more than three dozen billionaires; Pakistan has none (not a single dollar billionaire).

The other amazing aspect is the rapid pace at which India is creating wealth. In 2002, Dhirubhai Ambani, Mukesh and Anil Ambani's father, left his two sons a fortune worth $2.8 billion. In 2007, their combined wealth stood at $94 billion. On 29 October 2007, as a result of the stock market rally and the appreciation of the Indian rupee, Mukesh became the richest person in the world, with net worth climbing to
US$63.2 billion (Bill Gates, the richest American, stands at around $56 billion).
Indians and Pakistanis have the same Y-chromosome haplogroup. We have the same genetic sequence and the same genetic marker (namely: M124). We have the sam e DNA molecule, the same DNA sequence. Our culture, our traditions and our cuisine are all the same. We watch the same movies and sing the same songs. What is it that Indians have and we don't?

INDIANS ELECT THEIR LEADERS

The writer is an Islamabad-based freelance columnist. Email:
farrukh15@hotmail.com <mailto:farrukh15@hotmail.com>

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