नज़रों का फर्क

>> Friday, August 1, 2008

एक गुरुकुल में दो राजकुमार पढ़ते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन उनके आचार्य दोनों को घुमाने ले गए। घूमते हुए वे काफी दूर निकल गए। तीनों प्राकृतिक शोभा का आनंद ले रहे थे। तभी आचार्य की नजर आम के एक पेड़ पर पड़ी। एक बालक आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा। आचार्य ने राजकुमारों से पूछा, 'क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?' ' हां गुरुदेव।' राजकुमारों ने उत्तर दिया। गुरु ने पूछा, 'इस दृश्य के बारे में तुम दोनों की क्या राय है?' पहले राजकुमार ने कहा, 'गुरुदेव मैं सोच रहा हूं कि जब वृक्ष भी बगैर डंडा खाए फल नहीं देता, तब किसी मनुष्य से कैसे काम निकाला जा सकता है। यह दृश्य एक महत्वपूर्ण सामाजिक सत्य की ओर इशारा करता है। यह दुनिया राजी-खुशी नहीं मानने वाली है। दबाव डालकर ही समाज से कोई काम निकाला जा सकता है।' दूसरा राजकुमार बोला, 'गुरुजी मुझे कुछ और ही लग रहा है। जिस प्रकार यह पेड़ डंडे खाकर भी मधुर आम दे रहा है उसी प्रकार व्यक्ति को भी स्वयं दुख सहकर दूसरों को सुख देना चाहिए। कोई अगर हमारा अपमान भी करे तो उसके बदले हमें उसका उपकार करना चाहिए। यही सज्जन व्यक्तियों का धर्म है।' यह कहकर वह गुरुदेव का चेहरा देखने लगा। गुरुदेव मुस्कराए और बोले, 'देखो, जीवन में दृष्टि ही महत्वपूर्ण है। घटना एक है लेकिन तुम दोनों ने उसे अलग-अलग रूप में ग्रहण किया क्योंकि तुम्हारी दृष्टि में भिन्नता है। मनुष्य अपनी दृष्टि के अनुसार ही जीवन के किसी प्रसंग की व्याख्या करता है, उसी के अनुरूप कार्य करता है और उसी के मुताबिक फल भी भोगता है। दृष्टि से ही मनुष्य के स्वभाव का भी पता चलता है।' गुरु ने पहले राजकुमार से कहा, 'तुम सब कुछ अधिकार से हासिल करना चाहते हो जबकि तुम्हारा मित्र प्रेम से सब कुछ प्राप्त करना चाहता है।'

2 comments:

गरिमा August 1, 2008 at 4:25 PM  

सुन्दर, सही और सटीक। इसे पढाने के लिये शुक्रिया

Prakash August 6, 2008 at 10:23 AM  

garmiji: thank you for the compliment.