सत्संग

>> Friday, December 25, 2009

पुरानी कथा है, एक ऋषि थे। आश्रम में अपने शिष्यों को वे आध्यात्मिक जीवन के बारे में बताया करते थे। जब शिष्यों की शिक्षा पूरी हो जाती थी और वे अपने घरों को वापस जाने लगते थे, तो वे ऋषि से पूछते कि गुरुदक्षिणा में क्या दें? तब ऋषि कहते कि तुमने जो पाया है, दुनिया में जाकर उस पर अमल करो, अपने पैरों पर खड़े होओ, सच्चाई की कमाई खाओ और फिर एक साल बाद तुम्हारा जो दिल चाहे वह दे जाना।

शिष्य जब आश्रम छोड़कर जाते थे, तो उनमें से कोई एक पेशे में जाता था, कोई दूसरे में। अपने पेशे, अपने कामकाज से जिसे जो कमाई होती थी, उसमें से वे श्रद्धापूर्वक कुछ हिस्सा उन्हें दे दिया करते थे। एक बार गुरुकुल में एक सीधा-सादा शिष्य आया। वह साधारण गृहस्थ था। दिन भर मेहनत करके अपने परिवार का पालन- पोषण करता था। लेकिन ऋषि जब उसे पढ़ाते थे, तब उसको जो भी सबक देते, अगले दिन वह उसे जरूर पूरा करके लाता था। जो कुछ उसे सिखाया जाता था, उस पर पूरे मनोयोग से अमल करता था। जब उसकी शिक्षा पूरी हुई तो उसने भी गुरु से पूछा, दक्षिणा में क्या दूं? ऋषि ने उससे भी यही कहा कि दुनिया में जाओ, जो सीखा है, उस पर अमल करो और फिर एक साल बाद जो चाहो, वह दे जाना। गृहस्थ चला गया।

एक साल बाद वह भी गुरु के पास लौटा और श्रद्धा से बोला, दक्षिणा देने आया हूं। ऋषि उसे देख कर बड़े खुश हुए। हाल-समाचार जानने के बाद पूछा, क्या लेकर आए हो बेटा?

गृहस्थ ने दस लोगों को खड़ा कर दिया, जो उसके गांव के थे। फिर बोला, मैं गुरु दक्षिणा में ये दस नए शिष्य लाया हूं। ऋषि ने पूछा, दस लोग किसलिए? तो उसने कहा, जो शिक्षा आपने मुझे दी थी, मैंने उसे इन तक पहुंचाया। उतने से ही इनका जीवन संवर गया। अब आप गुरु दक्षिणा में इन सबको अपना शिष्य बना लें, ताकि इतने लोग और आपके बताए रास्ते पर सही तरीके से चल सकें। ऋषि बहुत खुश हुए और कहा, तुमने मुझे सबसे अच्छी गुरु दक्षिणा दी है।

हम भी जब किसी सत्संग में जाते हैं, तो समझ नहीं पाते कि हम वहां से क्या पाने आए हैं। बहुत से लोग सत्संग में इसलिए जाते हैं ताकि उनके सांसारिक कष्ट दूर हो जाएं। किसी के शरीर में कष्ट है, किसी के घर में समस्याएं चल रहीं है, कहीं पति- पत्नी की नहीं बन रही है, तो कहीं मां- बाप या भाई-भाई में झगड़े हो रहे हैं। कोई अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए आता है, कोई संतान की कामना रखता है। हम सब सोचते है कि सत्संग में जाएंगे, किसी महापुरुष के पास जाएंगे, तो हमारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। पर वहां हमें बार- बार यही समझाया जाता है कि अपने आप को जानो। हम यह सुनते हैं, बार- बार सुनते हैं। लेकिन इसका मतलब समझने की कोशिश नहीं करते। उस पर अमल नहीं करते।

बहुत से भाई- बहन दान या 'नाम' की चाहत में जाते हैं। उन्हें लगता है कि संत जी से नाम ले लिया और सारे दुखों का निवारण हो गया। लेकिन भजन या जाप के लिए वे समय नहीं निकालते। पहले की ही तरह सांसारिक भौतिक चीजों में धंसे रहते हैं।

उपर दी गई कथा में वह गृहस्थ जानता था कि उसके गुरु दूसरों में क्या बांटना चाहते हैं। साधारण जन जब सत्संग में जाते हैं तो यह नहीं जानते कि वहां संत उन्हें क्या देना चाहते हैं। वह तो उनसे केवल अपने मन की चीजें पाना चाहते हैं।

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छत्तीसगढ भारत का अंग है या नहीं?

>> Monday, July 13, 2009

An Article Publiched in JOSH18.com dt. 13 July 2009

छत्तीसगढ भारत का अंग है या नहीं?
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13 जुलाई 2009
जोश18

रविवार 12 जुलाई को छत्तीसगढ के राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने एक के बाद एक तीन जाल बिछाए और हर बार पुलिसकर्मियों के एक – एक दल की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी।
एक ही दिन में नक्सलवादियों ने एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 पुलिसवालों की हत्या कर दी।

देश की सुरक्षा पर यह हमला मुम्बई पर हुई आतंकवादी हमले से कम तो नहीं.. लेकिन देश में कितनी चर्चा हुई सुरक्षाकर्मियों के इस भयावह नरसंहार की?

राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित, छत्तीसगढ के एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 जवान नक्सलियों द्वारा बारुदी सुरंग से उड़ा दिए गए, लेकिन राष्ट्रीय टीवी चैनल “राखी का स्वयंवर” और सलमान खान का “दस का दम” दिखाने में व्यस्त रहे।

किसी भी फिल्मी व्यक्तित्व या खिलाड़ी के विदेश में पुरस्कारी जीतते ही बधाई पत्र जारी करने वाला राष्ट्रपति भवन ने देश की रक्षा में शहीद हुए इन जवानों को लिए एक शब्द भी नहीं कहा।
मुम्बई एक महानगर है और छत्तीसगढ, ग्रामीण भारत का हिस्सा, इसीलिए नक्सलियों का यह हमला मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले से कम है। है न?

दिल्ली में मेट्रो पुल गिरने से छह लोगों की मौत की खबर दो दिनों से छाई हुई है, इंग्लैंड- ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज का पहला टेस्ट ड्रॉ होने का विशेषज्ञ विश्लेषण किया जा रहा है, राखी सावंत का स्वयंवर, सलमान खान के टीवी शो में कंगना रानौत की उपस्थित और हॉलीवुड में मल्लिका शेरावत की धूम- ये सब हमारे टीवी चैनल की सुर्खियां थे, छत्तीसगढ में बारुदी सुरंग लगा कर उड़ाए गए सुरक्षाकर्मी सिर्फ चलताऊ खबर।

गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्र्पति, रक्षामंत्री चुप हैं इस हमले पर। देश के बीचोंबीच, 200 से 500 नक्सली पहले केंद्रीय सुरक्षा बलों के 10 जवानों की हत्या करते हैं, फिर उसकी जांच करने गए पुलिस दल को गाजर-मूली की तरह काट देते हैं और सरकार की तरफ से कोई एक शब्द भी नहीं बोलता।

एक युवक दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए जहर उगलता है और सांसद बन जाता है। फिर जेड श्रेणी की सुरक्षा की मांग करता है क्योंकि कथित तौर पर उसकी जान को खतरा है। दूसरा नेता दो प्रांतों के लोगों के बीच नफरत की खाई खोद कर, सरकार से प्राप्त ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा के साये में अपनी राजनीति की दूकान चलाता है क्योंकि उसकी जान को खतरा है। ये दोनों जब मुंह खोलते हैं या अदालत जाने के लिए घर से कदम निकालते हैं तो टीवी चैनल उसके एक-एक क्षण का “लाइव” प्रसारण करते हैं।
लेकिन ग्रामीण इलाके का एक पुलिस अधीक्षक नक्सलियों द्वारा घेर कर क्रूरतापूर्वक मार दिया जाता है और उसकी चर्चा तक नहीं होती।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान एटीएस प्रमुख करकरे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और एसीपी काम्टे की आतंकवादियों के हाथों किस तरह हत्या हुई थी, उसकी बहुत चर्चा हुई थी। पढ़िए राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे और उनके साथियों को किस तरह घात लगा कर मारा गया:
(रिपोर्ट साभार : देशबंधु)
“मदनवाड़ा पुलिस कैम्प में दो पुलिसकर्मियों की हत्या की खबर मिलते ही आईजी मुकेश गुप्ता तथा राजनांदगांव एसपी विनोद कुमार चौबे अलग-अलग वाहनों से घटना स्थल की ओर रवाना हो गए और मानपुर पहुंचे।

मानपुर से लगभग 11 बजे एसपी चौबे पूरे दल बल के साथ वहां से लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित राजनांदगांव के मदनवाड़ा के लिए रवाना हो गए। मदनवाड़ा पुलिस पोस्ट से कुछ दूर पहले ही नक्सलियों ने एसपी के ड्राइवर को गोली मार दी।

इसके बाद पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे व उनके साथ गए जवान गाड़ी से उतर गए और मोर्चा संभाल लिया।

नक्सलियों ने पुलिस दल पर चारों ओर से जबरदस्त फायरिंग शुरू कर दी। जवानों का नेतृत्व कर रहे एसपी विनोद चौबे ने काफी देर तक नक्सलियों से लोहा लेते रहे, लेकिन नक्सलियों की एक गोली एसपी चौबे के कंधे पर जा लगी और इससे पहले की वे संभलने की कोशिश कर पाते नक्सलियों ने उनपर गोलियों की बौछार कर दी।

एसपी चौबे की मौत के बाद भी जवानों ने मोर्चा संभाले रखा, लेकिन नक्सलियों ने पूरे इलाके को चारों तरफ से ऐसे घेर रखा था कि जवानों को बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था।

पूरे इलाके पर नक्सलियों ने कब्जा कर रखा है, जिसके चलते पुलिस को बचाव करने का मौका भी नहीं मिल पाया। बताया जा रहा है कि इस वारदात में दोपहर 1 बजे तक मोहला थाना प्रभारी विनोद धु्रव व एएसआई कोमल साहू के अलावा 21 जवान शहीद हो चुके थे।

शाम होते-होते शहीद होनेवालों की संख्या बढ़कर 30 हो गई, जो देर रात तक 34 हो गई।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मानपुर मोहला इलाके के मदनवाड़ा, सीतागांव सहित करीब चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है।” ....
चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है लेकिन न तो राज्य सरकार, और न ही केन्द्र सरकार इस पर कुछ बोलती है।
बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित एक पुलिस अफसर और 39 जवानों की मौत देश को या सरकार को हिलाने वाली खबर नहीं है.. समलैंगिकों को आपसी सहमति से सेक्स-संबंध बनाने की अदालती छूट मिलने की खबर, सप्ताह भर तक दिन-दिन भर दिखाने वाले टीवी चैनलों की खबर नहीं है..।


देख कर लगता है, छत्तीसगढ़ भारत का हिस्सा है भी या नहीं? ...
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देवी-देवता नहीं गांधी को पूजते हैं ग्रामीण

>> Monday, March 16, 2009

देश के मंदिरों में जहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, वहीं उड़ीसा  के संबलपुर के भतरा गांव स्थित गांधी मंदिर में रोजाना रामधुन के साथ महात्मा गांधी की पूजा की जाती है। गांव का हर व्यक्ति मंदिर से प्रसाद लेने के बाद ही अपने काम पर जाता है। सुनने में भले ही यह आश्चर्य लगे, लेकिन यह सच है कि करीब 35 वर्षाें से भतरा गांव में यही परंपरा चली आ रही है। देश भले ही महात्मा गांधी को गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती या शहीद दिवस पर याद करे, लेकिन भतरा गांव के लोग रोजाना महात्मा गांधी को किसी देवता की तरह याद करते है और उनकी पूजा करते हैं।
उड़ीसा के संबलपुर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूर कटक राजमार्ग से थोड़ी दूर स्थित भतरा गांव का यह गांधी मंदिर संभवत: देश का एकमात्र गांधी मंदिर है, जहां गांधी जी की कांसे की प्रतिमा सिद्धासन की मुद्रा में है। एक मीटर से थोड़ी ऊंची इस प्रतिमा को खलिकोट कला कालेज के एक कलाकार ने बनाया था जबकि मंदिर की अंदरूनी साज-सच्चा भतरा के ही तृप्तभूशण दास गुप्त ने की थी। इस गांधी मंदिर की परिकल्पना अनुसूचित जाति के नेता अभिमन्यु कुमार ने की थी। श्री कुमार जब रेढ़ाखोल से विधायक चुने गये तब उन्होंने इस परिकल्पना को साकार करने का निश्चय किया। संबलपुर के तत्कालीन राजस्व आयुक्त रवींद्र नाथ महांती ने भी विधायक उनका साथ दिया और 23 मार्च 1971 को गांधी मंदिर का शिलान्यास किया गया। करीब 11 मीटर लंबे, साढ़े छह मीटर से कुछ अधिक चौड़े और करीब 12 मीटर ऊंचे इस मंदिर को पूरा होने में तीन वर्ष लगे। तत्कालीन मुख्यमंत्री नंदिनी शतपथी ने 11 अपै्रल 1974 को इस मंदिर का उद्घाटन किया और तभी से यह गांधी मंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। वैसे महात्मा गांधी की पूजा तो रोजाना सुबह और शाम को की जाती है, लेकिन 26 जनवरी, 15 अगस्त और दो अक्टूबर को यहां विशेष पूजा की जाती है। संबलपुर जिलाधीश पहले इस मंदिर में पहुंचकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते है और इसके बाद अन्य कार्यक्रमों में शिरकत करते है। भतरा गांव का यह गांधी मंदिर एक और मामले में अन्य किसी मंदिर से अलग है। दूसरे मंदिरों के समक्ष जहां गरुड़ स्तंभ होता है, वहीं इस मंदिर के सामने अशोक स्तंभ है। मंदिर में भारत माता की प्रतिमा भी है, जिसके हाथ में तिरंगा है। और तो और गांधी मंदिर की चोटी पर भी तिरंगा लहराता रहता है। करीब डेढ़ हजार की आबादी वाला यह गांव नगरपालिका के एक प्रमुख वार्ड में शामिल है, लेकिन मौलिक सुविधाओं की कमी अब भी खलती है। गांव के अधिकांश लोग अब भी पेट की आग बुझाने के लिये गांव से बाहर निकलते है। वर्ष के 365 दिनों में से केवल तीन-चार दिन ही सरकारी अधिकारी और नेताओं के यहां दर्शन होते है। इस मंदिर को लेकर एक विकास कमेटी भी बनायी गयी है, जो समाज सेवा का कार्य भी करती है। कमेटी गरीब विद्यार्थियों की सहायता भी करती है। शाम के समय गांव वाले मिल-जुलकर मंदिर में भजन-कीर्तन करते हैं। मंदिर का पुजारी अब भी स्कूली बच्चों को गांधीगिरी का पाठ पढ़ाता है ओर सब की खुशहाली की कामना करता है।

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इंदौर में बनी थी गांधी जी की घड़ी

>> Monday, March 9, 2009

अमेरिका में नीलामी के चलते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पांच निशानियां इन दिनों चर्चा में हैं। इनमें एक जेब घड़ी भी शामिल है, जो इंदौर में बनी थी। घड़ी निर्माता एम. एम. कस्तूरे ने 11 जून 1947 को यह घड़ी गांधी जी को भेंट की थी।

स्वर्गीय कस्तूरे के पुत्र मुकुंद कस्तूरे ने रविवार को यहां बताया कि उनके पिता को घड़ी बनाने में महारत हासिल थी। उन्होंने इंदौर में 'उद्यम' नाम से घड़ियां बनाने का कारखाना शुरू किया था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर कस्तूरे ने पहली जेब घड़ी बनाई जो शायद देश की पहली हस्तनिर्मित घड़ी थी। उन्होंने यह घड़ी महात्मा गांधी को 1935 में उस वक्त दिखाई थी, जब वह मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा आयोजित हिंदी सम्मेलन में भाग लेने इंदौर आए थे।

60 वर्षीय मुकुंद कस्तूरे ने बताया कि हिंदी अंकों वाली यह पहली हस्तनिर्मित घड़ी थी। गांधी जी जिस घड़ी को कमर में लटका कर रखते थे, वह 1947 में पटना से दिल्ली जाते वक्त खो गई थी। यह खबर अखबारों के जरिए जब उनके पिता को पता चली तो उन्होंने गांधी जी को इंदौर से दिल्ली टेलीग्राम कर अपने ट्रेडमार्क उद्यम की घड़ी उन्हें भेंट करने की इच्छा जाहिर की।

मुकुंद ने बताया कि उनके पिता की यह इच्छा 11 जून 1947 को पूरी हो गई जब उन्होंने चांदी के केस में जेब घड़ी और एक हस्तनिर्मित टेबल घड़ी बापू को भेंट की। इस घड़ी के अंक हिंदी में थे। बापू की शहादत के दिन 30 जनवरी 1948 तक यही घड़ी उनके पास थी। 

source :daily jagran, Indore edition

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घड़ी कमर में लटकाऊंगा.. मैं गांधी बन जाऊं

>> Friday, March 6, 2009

बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।”

कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके।

उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा…”

तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती थी।

आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई है।


क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है?
कविता कुछ इस प्रकार थी:-

मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ

घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा

मुझे रुई की पोनी दे दे

तकली खूब चलाऊं

मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं


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ईमेल फ्रॉड

>> Wednesday, January 21, 2009

आप लॉटरी में लाखों डॉलर के इनाम जीत गए हैं, पर इसे पाने के लिए आपको कुछ पैसे भेजने होंगे। इस तरह के ईमेल अब बीते दिनों की बातें हो गई हैं। ईमेल के जरिये फ्रॉड के अब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिससे निपटने में सिक्युरिटी एक्सपर्ट भी नाकाम नजर आ रहे हैं।

हाल ही में एक कॉलेज स्टूडेंट के पास उसके दोस्त का मेल आया। मेल में इस स्टूडेंट के दोस्त ने कहा था कि उसका वॉलेट गुम हो गया है और उसे करीब 8 हजार रुपये की सख्त जरूरत है। इस मेल में उस स्टूडेंट के दोस्त का डिजिटल सिग्नेचर भी था। पर जब स्टूडेंट ने दोस्त को फोन लगाया तो उसे पता चला कि उसके दोस्त ने ऐसा कोई मेल ही नहीं भेजा है।

ईमेल के जरिये इस तरह फ्रॉड की घटनाएं और ऐसी कोशिशें तेजी से बढ़ रही हैं। यदि आप सोचते हैं कि आप इसका शिकार नहीं हो सकते हैं, तो आप गलत हैं।
इस तरह के फ्रॉड से बचने का सबसे पहला और जरूरी उपाय यह है कि आप अपने 2 ईमेल आईडी रखें। एक ऑफिशल और दूसरा पर्सनल। दोनों ही आईडी का पासवर्ड लंबा या बड़ा रखने की कोशिशि करें। पर ध्यान दें यदि आप यह सोचकर आसान पासवर्ड रखते हैं कि इसे आपको याद करने में आसानी होगी, तो आपके लिए खतरा भी है। साइबर हैकरों के निशाने पर सबसे ज्यादा आसान पासवर्ड ही होते हैं। पासवर्ड चुनते वक्त वर्ड और डिजिट का मिक्स हो काफी बढ़िया रहेगा। हां, पासवर्ड में अपना नाम, अपने पति/पत्नी का नाम, बच्चों का नाम, टेलिफोन नंबर और जन्मदिन का इस्तेमाल करने से हमेशा बचना चाहिए।

यदि आपको इस तरह के ईमेल मिलते हैं कि 'आपने डॉलर जीत लिया है'या फिर 'आपने ट्रिप जीत ली है' तो सतर्क हो जाएं। जाहिर तौर पर इसके पीछे को छिपी हुई चाल होगी। इस तरह के ईमेल को देखकर लालच में आने की जरूरत नहीं है। ये मेल आपको खतरनाक साइट की ओर ले जाएंगे। यदि आप ऐसे मेल के बहकावे में आ गए तो इससे आप या तो अनजाने में वायरस डाउनलोड कर लेंगे या फिर अपने कंप्यूटर को हैकरों के हवाले कर बैठेंगे। इतना ही नहीं, यदि किसी अनजान पते से आपके पास कोई हॉट लिंक क्लिक करने का ऑप्शन आता है तो भी आप उसे खोलने की गलती न कर बैठें। ऐसे किसी भी मेल के जवाब में अपनी पर्सनल इन्फर्मेशन कभी भी न दें। यदि आप मेल की सचाई का पता लगाना चाहते हैं तो सेंडर की वेबसाइट का पता सीधे टाइप कर पता लगाएं, मेल का कोई जवाब न दें।

वायरस स्कैनिंग और रिमूवल के लिए अपने पीसी या लैपटॉप में सिक्युरिटी सॉफ्वेयर इन्सटॉल करें। अपने कंप्यूटर के सिक्युरिटी अपडेट लगातार चेक करते रहें। आपका सिक्युरिटी अपडेट जितना बेहतर होगा, खतरा उतना ही कम होगा। कंप्यूटर में एंटी-वायरस और एंटी स्पाईवेयर प्रोग्राम इन्सटॉल करना फायदेमंद रहेगा। कुछ सॉफ्टवेयर फ्री में उपलब्ध हैं। नॉर्टन एंटी-वायरस, McAfee और ट्रेंट माइक्रो जैसे सॉफ्टवेयर के लिए पे करना पड़ता है।

कई बार आपके पास किसी बैंक ने नाम से ईमेल आते हैं, जिसमें आपसे आपकी पर्सनल इन्फर्मेशन मांगी जाती है। इस तरह के करीब 90 परसेंट ईमेल फर्जी होते हैं। यदि आपको ऐसे ईमल आते हैं तो आप इस पर रिस्पॉन्ड न करें। आप पहले उस URL (वेब अड्रेस जिससे ईमेल आया है) को सावधानी से चेक करें। कभी भी वैसे किसी व्यक्ति या वैसी किसी संस्था को ईमेल पर अपनी पर्सनल इन्फर्मेशन न दें, जिसे आप जानते नहीं हैं। यदि आप ईमेल पर पर्सनल इन्फर्मेशन दे रहे हैं तो हमेशा इस बात का ख्याल रखें कि जिस किसी को भी आप यह डीटेल दे रहे हैं, उसे डिटेल मुहैया कराना खतरनाक नहीं है।

साइबर कैफे ऑनलाइन क्रिमिनल्स के लिए हॉट स्पॉट होते हैं। लिहाजा साइबर कैफे से किसी को भी ईमेल के जरिये पर्सनल डीटेल भेजने से परहेज करें। अपनी कोई भी फाइनैंशनल डीटेल, अकाउंट नंबर, पासवर्ड आदि भेजने से बचें। साइबर कैफे से निकलने से पहले इस बात की पूरी तरह जांच कर लें कि आपने जो भी ऐप्लिकेशंस खोले थे, उसे लॉग आउट कर दिया है। वैसे साइबर कैफे में जाने से भी परहेज करें, जहां वाई-फाई जैसे वायरलेस नेटवर्क का इस्तेमाल होता है, क्योंकि ऐसी जगहों पर प्राइवेसी और सिक्युरिटी कम होती है।

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