इंदौर में बनी थी गांधी जी की घड़ी
>> Monday, March 9, 2009
अमेरिका में नीलामी के चलते राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पांच निशानियां इन दिनों चर्चा में हैं। इनमें एक जेब घड़ी भी शामिल है, जो इंदौर में बनी थी। घड़ी निर्माता एम. एम. कस्तूरे ने 11 जून 1947 को यह घड़ी गांधी जी को भेंट की थी।
स्वर्गीय कस्तूरे के पुत्र मुकुंद कस्तूरे ने रविवार को यहां बताया कि उनके पिता को घड़ी बनाने में महारत हासिल थी। उन्होंने इंदौर में 'उद्यम' नाम से घड़ियां बनाने का कारखाना शुरू किया था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर कस्तूरे ने पहली जेब घड़ी बनाई जो शायद देश की पहली हस्तनिर्मित घड़ी थी। उन्होंने यह घड़ी महात्मा गांधी को 1935 में उस वक्त दिखाई थी, जब वह मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा आयोजित हिंदी सम्मेलन में भाग लेने इंदौर आए थे।
60 वर्षीय मुकुंद कस्तूरे ने बताया कि हिंदी अंकों वाली यह पहली हस्तनिर्मित घड़ी थी। गांधी जी जिस घड़ी को कमर में लटका कर रखते थे, वह 1947 में पटना से दिल्ली जाते वक्त खो गई थी। यह खबर अखबारों के जरिए जब उनके पिता को पता चली तो उन्होंने गांधी जी को इंदौर से दिल्ली टेलीग्राम कर अपने ट्रेडमार्क उद्यम की घड़ी उन्हें भेंट करने की इच्छा जाहिर की।
मुकुंद ने बताया कि उनके पिता की यह इच्छा 11 जून 1947 को पूरी हो गई जब उन्होंने चांदी के केस में जेब घड़ी और एक हस्तनिर्मित टेबल घड़ी बापू को भेंट की। इस घड़ी के अंक हिंदी में थे। बापू की शहादत के दिन 30 जनवरी 1948 तक यही घड़ी उनके पास थी।
source :daily jagran, Indore edition
Read more...घड़ी कमर में लटकाऊंगा.. मैं गांधी बन जाऊं
>> Friday, March 6, 2009
बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।” कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके। उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा…” तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती थी। आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई है। क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है? मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा मुझे रुई की पोनी दे दे तकली खूब चलाऊं मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
कविता कुछ इस प्रकार थी:-
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ