नया साल देता है नया मौका....
>> Monday, January 3, 2011
एक और साल बीता और नए का आगमन हुआ। आखिर नए साल का कितना महत्व होता है? अगर हम कैलंडर हटा दें तो यह दिन भी वैसा ही होगा जैसे बाकी आम दिन। यानी हमारे सामने वही सब चीजें होती है, वैसा ही दिन, वैसी ही रात, वही घर और वही बिस्तर। कुछ घंटे और कुछ सेकंड्स के अंतर पर भौतिक रूप से चीजें नहीं बदलतीं। इसे दार्शनिक रूप से सोचा जाए तो बाकी पुराने दिनों की ही तरह ही यह एक नया दिन होगा। लेकिन नए साल का एक भावनात्मक पहलू होता है।
दरअसल इंसान एक भावनात्मक प्राणी है और अपने मानसिक धरातल पर वह एक अलग दुनिया में जीता है। इस दुनिया में रिश्ते होते हैं, लोग होते हैं, आदतें होती हैं और उसकी यह दुनिया बाहरी भौतिक दुनिया से एकदम अलग होती है। जैसे एक व्यक्ति जिसे आप नहीं जानते, और वह आपके पास से गुजरता है तो वह आपके लिए सिर्फ एक शरीर है। लेकिन उसके जीवन में झांकेंगे तो पाएंगे कि वह तो अपने साथ कितनी चीजें लिए जा रहा है। अनुभव, आशाएं, सपने, डर, सुख-दुख और न जाने कितनी ही चीजें। यानी मानसिक रूप से इंसान एक अलग जिंदगी जीता है।
दरअसल नए साल की परिकल्पना हमारी मानसिक दुनिया को ही प्रभावित करती है। हमारी मानसिक दुनिया में हर छोटी चीज का बड़ा महत्व होता है और वहीं जन्म होता है नए रिजॉल्यूशन, नई प्रतिज्ञा और नए संकल्प का। अब सवाल ये है कि ये नए संकल्प हम पूरे कैसे कर सकते हैं?
एक होटल में एक आदमी पियानो बजाता था मगर दो तीन दिन से उसकी परफॉर्मेंस बहुत ही खराब थी। होटल मालिक ने सोचा कि शायद उसकी तबियत ठीक नहीं। उसने डॉक्टर को बुलाया लेकिन सब सही था। पियानो बजाने वाले ने पियानो ट्यून किया तो भी सुर नहीं सधे। आखिर मालिक ने पूछा कि आखिर तुम्हें हुआ क्या है? इतने में ही पियानो बजाने वाले का दोस्त बोल पड़ा कि उसे कुछ मत कहिए, दरअसल उसकी बेटी बीमार है। मालिक ने उसे घर जाकर बेटी का इलाज कराने को कहा। यह कहानी कहने के पीछे मेरा मकसद यह था कि जीवन में चीजें सतही तौर पर ठीक नहीं की जा सकती। जैसे पियानो को ट्यून करने से वह नहीं बजेगा बल्कि बेटी के ठीक होने से मन अच्छा होगा और तभी पियानो भी अच्छा बजेगा। यही हाल हमारे रिजॉल्यूशन का भी है। चीजों को बदलने के लिए उसके मूल तक पहुंचना जरूरी है।
हम सिगरेट और शराब छोड़ने का रिजॉल्यूशन लेते हैं लेकिन हमें यह सोचने की जरूरत है कि आखिर हम ये सब पीते ही क्यों हैं? समस्या के मूल तक पहुंचकर उसे हल करने का संकल्प लें न कि आवरण बदलने का।
नया साल मनाने की शुरुआत रोम में हुई थी। वहां जेनस नाम के उनके भगवान हुआ करते थे और उन्हीं के नाम से जनवरी शब्द निकला। जेनस के दो मुंह थे एक आगे देखने के लिए और दूसरा पीछे देखने के लिए। मतलब नया साल शुरू करते हैं तो पुराने को अपने से एकदम काटकर उसकी शुरुआत नहीं हो सकती। नए साल के संकल्प इसलिए टूट जाते हैं क्योंकि वे जोश में लिए गए होते हैं और उत्साह कई बार क्षणिक भी होता है।
जेनस की तरह आगे देखने के साथ-साथ पीछे भी देखें। पुरानी गलतियों से सीखें फिर नए साल का संकल्प लें। हर साल हमें एक नए जीवन की नई शुरुआत करने का मौका मिलता है। यह मौका हर संस्कृति में मिलता है। गंगा स्नान भी तो यही है। गंगा में डुबकी लगाते हुए भी तो हम भविष्य में कोई पाप न करने का संकल्प लेते हैं। हर इंसान को कुछ नया पाने की इच्छा रहती है। जीवन में यदि सुधरने का मौका न मिले तो जीवन नीरस और उबाऊ हो जाएगा। नए संकल्प करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन उन्हें फलीभूत करने की जरूरत है। ऐसे काम पूरे करने की सोचें जिन्हें अब तक आप टालते आ रहे हों।
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
साभार-प्रसून जोशी
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